कविता : दो लफ़्ज़ों में
दो लफ़्ज़ों में कहदे ऐसा, सौ लफ़्ज़ों में कहा न जाए।
दिल में उतरे बात सीख दे, जीवन भर भी भूल न पाए।।
शब्दों का ज़ादू ही तो है, सबको अपना जो कर लेता।
पापी मानव का पाप छुड़ा, सही दिशा है उसको देता।।
सोच समझकर शब्द बोलिये, ये छूटे तीर सरिस होते।
इसीलिए तो कहते सज्जन, धैर्य नहीं गुस्से में खोते।।
नम्र रहो चंद्र-सरिस हर क्षण, चैन हमेशा तुम पाओगे।
औरों को सुख देकर प्यारे! सुखी स्वयं भी हो जाओगे।।
शब्दों की गरिमा में रहकर, मर्यादित हम हो जाते हैं।
कभी-कभी हम दो लफ़्ज़ों में, सत्य जगत् का कह जाते हैं।।
शब्द-नदी को दूषित करना, परिणाम बुरे देता आया।
कथन अँधे का पुत्र अँधा ने, एक महाभारत करवाया।।
#स्वरचित रचना
#कवि : आर. एस. ‘प्रीतम’