कविता तुम से
कविता तुम से
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दरअसल कविता शब्द दर शब्द
अनुभूति का प्रवाह है
जिसे मैं
कागज पर लिखता हूँ बस
कविता बनाना वैसा ही है
जैसे मन को बनाना
बिना मन को तैयार किए
कविता चल नहीं सकती
कलम कोरे कागज पर
फिसल नहीं सकती
बेमन लिखी हुई कविता
लंगड़ी –लूली अपंग हो
रचना मेरी
बिना रूप रंग हो
यह तुम सह नहीं पाती हो
अर्धांगनी होने का
रिश्ता निभाती हो
तुम ही तो हो जो
मेरा मन खूब बनाती हो
तभी मैं कहता हूँ,
मैं कविता लिखता हूँ
तुम कविता बनाती हो।
– अवधेश सिंह