कविता : तुमसे रोशन सभी नज़ारें
मन व्याकुल और कंठ है अवरुद्ध, अब तुम ही राह दिखाओ।
मालिक हो दाता हो प्रभु तुम नेक, मेरा विश्वास बढ़ाओ।।
हार चुका हूँ जग के छल से आज, अब तुमसे हिम्मत पाऊँ।
पालनहार तुम्हीं हो सबके एक, तेरे आगे शीश नवाऊँ।।
आशीष तुम्हारा संजीवन शक्ति, पलपल पाना मैं चाहूँ।
एक भरोसा आशा मेरी आप, और कहाँ किस दर जाऊँ।।
साहस सपने सोच नयी दो आज, मिले विजय श्री ख़ुद पर ही।
ख़ुद को पहले जो जाऊँ मैं जीत, जीत सकूँगा जग को ही।।
तुमसे रोशन सभी नज़ारें देख, मुझमें भी ताक़त आए।
नदिया चलना कमल हँसी की रीत, मुझको हँसके दे जाए।।
देखे मैंने पतझड़ बाद बसंत, फिर क्यों मन ये घबराए?
यहाँ अँधेरा चीर उजाला रोज, राह जीत की दिखलाए।।
मुझको अब क्या डर तुम मेरे साथ, कभी न तुमको भूलूँगा।
रहे नेहमत तेरी बस भगवान, नीलगगन को छू लूँगा।।
नहीं उदासी आकर तेरे पास, तू घट में मेरे रहता।
जाना समझा तुमको मैंने आज, निज भ्रम में था दुख सहता।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना