कविता तुझसे इश्क हुआ तो
तुझसे इश्क़ हुआ तो सनम अब घाटे का है क्या रोना
तूने ही कहा था शक़्ल अच्छी नहीं ,जाकर मुँह धोना
खुमार इश्क़ का उतरता नहीं दिलो दिमाग़ से ऐसे कि
दिल हो गया मेरा तेरे हाथों के खेल का कोई खिलौना
ये बात और सनम जवानी की ख़लिश होती सबको है
पर ये तो बता दें मुझकों भी तू तुझे पाकर क्या खोना
जब खुदा मान लिया मैने अपने दिल का तुझको बता
तेरे प्यार की चमक के आगे फेल चाहें हीरा हो सोना
जानता हूँ तुझे फ़िक्र मेरे प्यार से ज्यादा मां बाप की
आसाँ नहीं होता राजी इश्क़ में किसी बाप का होना
हमदर्द ने इश्क़ किया या कोई है नशा मोह्हबत का
मुझे इस बेनाम रिश्ते को बता कहा तक पड़े ढोना
हमदर्द दिल्ली से