कविता : झूठ
याद झूठ को रखना पड़ता, पोल कभी भी खुल जाए।
झूठ गिराती अंतर्मन से, ये मुख का रंग उड़ाए।।
चढ़े एक बार काठ हांडी, कथन हमेशा याद रखो;
विश्वास टूटकर जुड़े नहीं, नज़रों से जब गिर जाए।।
झूठ रुलाती सुनो एक दिन, आज भले सुख बन जाए।
नीम-निबोली कच्ची समझो, जिसमें स्वाद नहीं आए।।
कभी मृत्यु का कारण बनती, कभी घरों को तुड़वाती;
मनुज छोड दो आज अभी तुम, जीवन सुंदर हो जाए।।
पीर पहुँचाकर औरों को तुम, सुखी नहीं रह सकते हो।
सच सामने आएगा जब भी, क्षणभर में ढ़ह सकते हो।।
सम्मान कहीं नहीं झूठ का, नफ़रत ही मिलती देखी;
नफ़रत पाकर यहाँ गर्व से, क्या कुछ भी कह सकते हो?
निर्दोष जीव की जान बचे, झूठ सत्य से तब बढ़कर।
वरना ज़हर सरिस समझो, निकलों न कभी तुम छूकर।।
सच बोलो जीवन है सुंदर, रहो हमेशा तुम हँसकर;
झूठ कभी मत बोलो प्रीतम, बैठोगे सब तुम खोकर।।
#आर.एस. प्रीतम
#स्वरचित रचना