कविता जन्म लेती है
==== गीतिका====
पराजय जब न हो स्वीकार कविता जन्म लेती है।
लगे जब जीत भी इक हार कविता जन्म लेती। ।
कुचल जायें हृदय के जब अधूरे ही सभी सपने।
पले फिर एक हाहाकार कविता जन्म लेती है। ।
उठे मन पीर जब मीठी किसी की याद तड़पाये।
रहे ना खुद पे’ जब अधिकार कविता जन्म लेती है। ।
मधुर बंधन उरों का दो कहीं टूटे बहें आँसू।
विरह की चीख ले आकार कविता जन्म लेती है।।
चले जब झूठ का सिक्का जमाना मौन हो जाये।
कलम जागे भरे ललकार कविता जन्म लेती है। ।
अँधेरा हो निराशा का दिखे कोई न उजियारा।
भटक जाये अगर संसार कविता जन्म लेती है।।
चली जायें बहारें रूठ कर माली खड़े सोचें।
मने जब प्रीत का त्यौहार कविता जन्म लेती है।।
गगन बरसे धरा उपजे मगर रोगी रहे दुनिया।
रहे ना शेष जब उपचार कविता जन्म लेती है। ।
——-विनोद शर्मा “सागर ”
( प्रस्तुत गीतिका का आधार छंद- विधाता मापनी युक्त मात्रिक
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदान्त- आर
सीमान्त- कविता जन्म लेती है)