कविता.. घर आजा बहना
कविता… घर आजा बहना
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सूनी कलाई है मेरी ,बहना सजाने आ
कुछ दिन से खेले नहीं, मुझ को हराने आ
मां कह रही है ,आएगी बेटी मेरी जरूर
एक बार राजा- रानी के किस्से सुनाने आ
एक साल गया ठीक से देखा नहीं तुझे
सुना पड़ा है माथा ,टीका लगाने आ
पापा भी कह रहे हैं, आएगी मेरी लाडो
सोई हुई उम्मीदें ,पापा की जगाने आ
सूने से आंगन में ,बस तेरी कमी है
सावन के गीत झूले पर, अब तो सुनाने आ
बच्चे भी उछल -कूद ये गा रहे गाना
आ बुआ मेरी आ, गोदी में उठाने आ
भाभी भी तेरी मायके, नहीं जा रही इस बार
भाभी के संग बातों की खिचड़ी पकाने आ
सबकी नजर तेरी ही ,राहों में लगी है
एक रात के लिए ही सही, अपने घराने आ
बिन तेरे कौन मेरी ,कलाई सजायेगा
लाडो मेरी बहना, इसे आकर सजाने आ।।
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प्रस्तुत रचना के मूल रचनाकार….
डॉ. नरेश “सागर”
इंटरनेशनल बेस्टीज साहित्य अवार्ड से सम्मानित
9897907490