_कविता : कौन साँस सुख की भरता?_
कविता : कौन साँस सुख की भरता?
क्षांत बनो घीया हृदय नहीं, निशि-वासर काँत करोगे।
तिल्लाना छेड़ो प्रेमभरा, घुप-संकट शांत करोगे।।
नाकुल सीधा सत्य दिखाए, बुद्धि संकरा हरता है।
घृणा प्रेम से डरती हारी, मूर्ख मनुज क्यों करता है?
भूल यातना पर को देना, पर ही कतरा करता है।
पर समझे कोई नहीं यहाँ, पीर मनुज ख़ुद रचता है।।
दोष ख़ुदा को देता प्रतिपल, देख अभागा कितना है।
जो जिसको रचता है प्रीतम, दर्द नहीं सुख-सपना है।।
कौन किसी से हारा जग में, कौन किसी से जीता है।
बस भ्रम की सुरा पिये मानव, गलती की बद सरिता है।।
अंत दुखद पाकर रोये है, जीवनभर ऐंठा करता।
बिन समझे निज जीवन मंज़िल, कौन साँस सुख की भरता?
आर.एस.’प्रीतम’
स्वरचित रचना