कविता (कोरोना)
मानव और दानव
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जूझ रहे हैं पड़े पड़े जो ,
विकट कुरोना की पीड़ा ।
उनकी करने को सहायता,
उठा लिया जिनने बीड़ा
वे डाक्टर वे समाज सेवक,
बचा रहे हैं जिंदगानी ।
पहुँचा रहे दवाई कोई,
कहीं कोइ भोजन पानी ।।
कोई जुटा रहे आक्सीजन,
कोई देते दान बड़ा ।
मरीज भरती करवाने में,
करें कोइ संघर्ष कड़ा ।
हारी बाजी जिता रहे हैं,
हर प्रकार से देकर ध्यान ।
उनका बार बार अभिनंदन,
वे मानव होकर भगवान ।।
इस विपदा का लाभ उठाकर,
कुछ कर रहे कमाई हैं ।
भारी कीमत में इंजेक्शन,
चुपके से सप्लाई हैं ।
दया धर्म का काम नहीं है,
कमा रहे धन काफी हैं ।
मानव होकर वे दानव हैं,
अत्याचारी पापी हैं ।।
देने जुटे विषम हालत में,
जो मानवता को धोखा ।
हे प्रभु उनका ठीक तरह से,
कर देना लेखा जोखा ।
लगा मास्क का कवच समर में,
हिम्मत नहीं हारना है ।
संयम का ले खडग दुष्ट को,
लड़कर हमें मारना है ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश