कविता की मुस्कान
कविता की मुस्कान (दुर्मिल सवैया )
कविता मिलती हँसती उससे मधु गीत सुनावत नाचत है।
जिसमें शिव अमृत भाव भरा उर में प्रिय राग लुभावत है।
कविता उसको मिलती नहिं है जिसमें विष बेलि फली लगती।
जिस का दिल कोमल तंत्रनुमा कविता उससे लिपटी रहती।
कविता जगती खिलती सजती रहती उस पावन के घर में।
जिसका घट निर्मल नीर भरा अति शीतल भाव धरा उर में।
कविता रस अमृत देत उसे जिसका प्रिय कर्म स्वभाव बने।
करता शुभ चिंतन जो सब के हित को दिल से हरहाल चुने।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।