कविता की महत्ता
करती जो प्रेरित ।
दिखाएँ जो रास्ता ।
विविध रंग उसके ।
पढे रस में डूबके ।
हिलाई थी जिसने ।
अंग्रेजो की सत्ता ।
कुछ ऐसी ही है ।
कविता की महत्ता ।
कभी उगले अंगारे ।
त्राहि -त्राहि पुकारे ।
बन जाती है कभी ।
सबके सहारे ।
गिरती न कभी साहित्य की दीवारे।
सुन जिसकी तान को ।
कलरव विहान को ।
देशभक्तो ने है अपने सिर वारे।
रामप्रसाद बिस्मिल की ।
वो चिरस्मरणीय पंक्तियाँ ।
“सरफरोशी की तमन्ना ”
अब हमारे दिल में है ।
ऐसी थी वो कविता ।
छलके जिसमे भव्यता ।
सुन भगत सिंह की जुनूने क्षमता।
इंकलाब जिंदाबाद के नारे को।
मरते दम तक रहा जो रमता ।
वो कविता की ही थी शक्ति ।
बदल कर रख दी थी जिसने सबकी मति ।
देश की आजादी में कैसे हम भूले इन वीर शहीदो की उक्ति ।
समाज को दिशा दें ।
कुछ तो निशां दे ।
बदले है जिसने माहौल सारे ।
कविता ही है ।
वो आसमाँ की सितारा ।
चमक से हां जिसकी स्फुटित जहां सारा ।
दहेज प्रथा का था ढिंढोरा ।
या फिर स्वच्छता का नारा।
महिला सशक्तिकरण ।
या बेरोजगारी का चित्रण ।
कविता ने सबका दिखाया नजारा।
कविता ने होती अगर इस धरा पर।
बहती नदी फिर ।
जुबाँ से वो धारा ।
राष्ट्रगान हो या राष्ट्रगीत ।
देशभक्ति के एकसूत्र मे पिरोए ये कविता ।
सोए हुए को जगाए ये कविता ।
कुरीतियो को हटाएं ये कविता ।
कसे तंज कभी हंसाए ये कविता।
हो जब करूण तो रूलाती है कविता ।
भूले-भटके को मार्ग दिखाती है कविता ।
कभी गीत,संगीत बनके ।
रोम-रोम को हर्षाती है कविता ।
मंदिर मे शंखो-सी गूंज जाती ।
मस्जिद में अजान बन जाती है कविता ।
गिरजाघर,गुरुद्वारा में प्रार्थना राग सुनाती है कविता ।
बुरे कार्य का परिणाम बुरा ।
अपने पंक्तियो से ।
बताती है कविता ।
समाज में भाईचारा लाती है कविता ।
बिछङे को मिलाती है कविता ।
कभी बनकर शायरी ।
कभी हां गजल ।
आशिको के मन को मचलाती है कविता ।
प्राकृतिक सौंदर्य ।
वीरो का शौर्य ।
सबको हर पल गाती है कविता ।
है रंग इसके विविध ।
ताल से ताल मिलाती है कविता ।
अपने सुरज पर नचाती है कविता।
नदियो मेदवेदेव कल-कल ।
समंदर में लहराती है कविता ।
हवाओ में सनसनाती है कविता ।
रिमझिम बारिश की बूंदो सी बरसती है कविता ।
ग्रंथ, सूक्ति, वेद,मंत्र ।
उपनिषद्, पुराण में ।
मोक्ष का द्वार बनकर जाती है कविता ।
अलंकार,रस मे सराबोर हो ।
काव्य की शोभा बढाती है कविता।
रणक्षेत्र में हुंकार कभी बन ।
वीर-शौर्य की महिमा दर्शाती है कविता ।
कोयल की कुक्कू बन।
पपीहे की पीहू ।
मोर की केकी सुनाती है कविता ।
कपिल,गौतम,पाणिनी आदि मुनियो केक नस-नस में लहू सी बहती थी कविता ।
गीता ज्ञान बन।
कभी कुरूक्षेत्र में ।
अर्जुन -मोहभंग ।
कराई थी कविता ।
नवधा भक्ति ।
श्रीराम के मुख से ।
शबरी को कभी ।
सुनाई थी कविता ।
कभी बसंत बन ।
कभी ग्रीष्म बन ।
घटाओं -सी छात्र जाती है कविता।
वाहनो का हॉर्न ।
कभी मोबाइल का रिंगटोन ।
ट्रैफिक -पुलिस की सीटी-सी बन जाती है कविता ।
क्रिकेट की कमेण्टरी ।
कोई फिल्म डाक्यूमेंट्री ।
बन दर्शको के दिल को हर्षाती है कविता ।
कभी बनकर सोहर ।
कभी हां कव्वाली ।
कभी बनकर हाथो की ताली ।
आ जाती है कविता ।
मक्खियो की भिनभिनाहट ।
सर्प की फुंफकार ।
कभी बनकर शेर की दहाङने ।
डरा जाती है कविता ।
आशा की कोई ।
किरण जहां न हो ।
वहां एक साहस दे जाती है कविता ।
कभी दिल की धड़कन ।
महकता-सा चंदन।
कलियो -सा यौवन ।
चंचल मन की आवाज बन जाती है कविता ।
कभी हड़ताल ।
कभी बनकर अनशन ।
अधिकारो की मांग ।
कराती है कविता ।
कभी सूर्य, तुलसी ।
कभी पंत निराला ।
कभी प्रसाद, मीरा ।
बन जाती है कविता ।
हवाओ का झोंका ।
कभी बनकर जाती ।
कभी रेत-सी सूख जाती ।
नदियो की धारा ।
समंदर की लहरे ।
आकाश की बिजली ।
बादल,घटा,तारे ।
सबके रंग बिखेरती है कविता ।
इन्द्रधनुष -सी फितरत है उसकी ।
सूने में रंग भरने जाती है कविता।
कभी भजन-बन कभी स्तुति।
ईश्वर को सुनाती है कविता ।
चुङी की खनक ।
पायलो की झनकार ।
बनकर कभी स्त्रियो के श्रृंगार ।
सामने आती है कविता ।
कभी चांद-सी ।
कभी सूर्य सी ।
ठण्डक,गर्म हो जाती है कविता ।
दिन का उजाला ।
वो रात अंधेरी ।
पक्षी का कलरव ।
श्रृंगाल की बोली ।
बन जाती है कविता ।
कभी छंद बन ।
कभी बनकर दोहा ।
बनकर चौपाई बन या रोला ।
कई रूपो में नजर आती है कविता ।
कभी तान वीणा ।
कभी सुर बांसुरी ।
कभी डम-डमरू बन जाती है कविता ।
कितना बताए हम ।
कविता की महत्ता ।
भूल-भुलैया- सा ।
है इसका रास्ता ।
कही से भी शुरू हो जाती है कविता ।
शुरू हो जाती है कविता ।
कवि :- RJ Anand Prajapati