कविता !! किताब !!
मैं स्याही
कोरे काग़ज पर
विस्तार चाहती हूं
अपने काले नीले रंग
से अपनी अमिट छाप छोड़ना
मैं काग़ज
मैं भी पुराने
अपने वक्षस्थल में
टंकन की धवनि से
अंकित होना चाहता हूं
मैं कलम
सबके हाथों
आकर अपने पुराने
अपने अंदर स्याही को
पुरासमो कर चलना चाहता हूं
मैं शब्द
अपने सब भाव
समेट कर एक बार
कलम स्याही के साथ
काग़ज पर स्थान चाहता हूं
मैं किताब
इन सबको ही
एक साथ लेकर
घर के किसी आलमारी में
नऐक्रम से दिखना चाहता ह़ू
स्वलिखित डॉ.विभा रजंन (कनक)