कविता और हम
कविताएं पढ़कर मेरी अक्सर इसके पीछे का राज पूछा करते हैं,
कैसे लिख देती कलम मेरी उन बातों को जो अक्सर गुमनाम हो जाती हैं,
जज्बात जो होते मेरे अंदर और समाज के साए में कहीं छिप जाते हैं,
वही जज्बात कलम से निकलकर मेरी कविता के शब्द बन जाते हैं,
जो देखते हम समाज में रोज़ और जिन पर अपने विचार बनाते हैं,
उन्हीं विचारों को भावों में पिरोकर हम शब्दों का निर्माण करते हैं,
सुनते हम कई कवियों को तो कभी वादो को भी सुनते हैं,
निष्कर्ष निकाल कर उनसे अपना ग़ज़ल रूप में समक्ष सबके रखते हैं,
समाज के सागर में हम सोच की नाव कुछ यूं चलाते हैं,
लोगों की सुनते हम बहुत पर अपने जज्बात कागज पर उतार जाते हैं,
शब्द बोल न पाते जो बोल वो कलम का सहारा ले हम बोल जाते हैं,
क्यूंकि हर क्रांति का आधार हम कलम से लिखे जज्बातों को ही मानते हैं,
दुनिया की नज़रों में जो शब्द होते वो किसी के भाव का आधार बनते हैं,
समझा नहीं पाते जिन बातों को अक्सर हम उन्हीं को कागज पर उतारते हैं,
किसी को हम सिखाए क्या कि जज्बात कैसे यहां लिखते हैं,
अरे हम रोज़ यहां कुछ बातों में ही लिखने का जरिया ढूंढ़ते हैं,
रोज़ पढ़ते कुछ नया तो रोज़ किसी को सुनते हैं,
तभी तो हर कविता में हम खुद में ही बड़ा बदलाव पाते हैं