कविता और बेटियां
कविता और बेटियाँ
—————–
कवितायें और बेटियाँ होती हैं एक जैसी,
भावनाओं के समंदर मे जब संवेदनाओं की लहरें,
यथार्थ के धरातल से छू जाती हैं तो कविता बन जाती हैं,
कवितायें बनाई नहीँ जाती बन जाती हैं,
जैसे किसी घर मे बेटों की चाह पाले अपने मन मे,
जब सब कहते हैं की कोइ फर्क नहीँ पड़ता हमें,
बेटा हो या बेटी,
तब दिख जाती है उनके मन मे बेटों के लिये चाह,
इसी चाहना,ना चाहना के बीच से,
सबको मूक कर के जो आ जाती हैं,
एक दिन सबकी दुलारी हो जाती हैं बेटियाँ,
बस जैसे कवितायें मन की प्यास बुझाती हैं,
किसी कवि के मन की हर बात कह जाती हैं,
वैसे ही किसी परिवार को एक परिवार बनाती हैं बेटियाँ,
हर रिश्ते को एक मायने दे जाती हैं बेटियाँ,
किसी घर की,परिवार की,खुशियों की कविता बन जाती हैं बेटियाँ.
©कॉपीराइट अजय प्रताप सिंह चौहान