” कविता और प्रियतमा
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कोई बनती नहीं कविता ,
तुम्हारे दूर जाने से !
न जाओ भूलके मुझसे ,
किसी के और कहने से !!
तुम्हारे रूप से ही तो
बनीं है मेरी कविताएँ
तुम्हारी मुस्कुराहट से
सजी है मेरी आशाएँ
जरा तुम बोल देती हो
मधुर संगीत बनता है
अधर की भंगिमाओं से
नया एक ताल मिलता है
नयन को देखने से ही
मेरी कविता निखरती है
जो पलकों को गिरादो तो
नयी कोई बात बनती है
अधूरी मेरी कविता है
बिना तेरे रूप यौवन से
तेरा ही साथ है सब कुछ
नहीं कुछ चाह जीवन से
कोई बनती नहीं कविता ,
तुम्हारे दूर जाने से !
न जाओ भूलके मुझसे ,
किसी के और कहने से !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
02.02.2024