कविता और गरीब की लुगाई / MUSAFIR BAITHA
कविता और गरीब की लुगाई
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कविता जैसे
निबला की पत्नी
और गांव भर की भौजाई
होकर रह गई है
जिसके भी चाहे जो मन में आए
कविता के नाम पर
ठेले जा रहा है
इस लिहाज से
फेसबुक सबसे बड़ा ठेला बन गई है!
कविता के नाम पर प्रायः
मज़ाक परोसा जा रहा है
इस प्रभूत दोहन की विधा को
गरीब की लुगाई मानिए तो
थोक भाव से दे दनादन ठोकने वाले
दैनिक तौर पर
दर्जनों कविता लिख मारने में मस्त कवियों को
उसका लुंपेन औ’ शील–हर पड़ोसी!
(Note : इसे भी आप कविता ही मान ले सकते हैं! गो कि शब्द–बंध और बिंब इसके ठीक से स्थिर नहीं हो पाए हैं अभी। फर्स्ट ड्राफ्ट है।)