कविता: एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
कविता: एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
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घनी अंधेरी रात भयी, चाँद निकलने वाला है।
चटक चांदनी छटा बिखेरे, फैला श्वेत उजाला है।
चंदा मामा कहे धरती से, लगता बहुत निराला है,
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
स्वर्ग से सुंदर दिखने वाली, बहना हाल सुनाओ तुम।
उपहार में क्या क्या लोगी, मन के भाव बताओ तुम।
टिम टिमाते तारे बोले, क्या पसंद तुम्हें दुशाला है।
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
धैर्यशाली धरती बोली, बहुत दुःखी मैं रहती हूँ।
मानव बागी हो गया है, नित नए दर्द मैं सहती हूँ।
जलते जंगल मरते जीव, उठता धुंआ अब काला है।
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
मानव मानव में प्रेम नहीं, दुश्मन बने सब धांसू हैं।
बहन बेटी लाज बचाती, माँ की आंख में आंसू हैं।
मरते भूखे नन्हे बच्चे, भ्रष्टों के गले माला है।
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
परमाणु बम सीने पर रखे, जीना मुश्किल हो गया।
घुलता ज़हर पानी में अब, पीना मुश्किल हो गया।
सूखी झीलें सूखे ताल, नदिया बनी अब नाला है।
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
बिजली और प्लास्टिक ने, बड़ी हानि पहुँचायी है।
सीना छलनी कर दिया है, कब्र मेरी खुदवायी है।
सांठ गाँठ है सबकी इसमें, सबकी जुबां पर ताला है।
एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
भैया तुम बचके रहना, मानव तुम तक आ गया।
करना मेरी रक्षा हमेशा, संकट भारी छा गया।
हो गए मानव गूंगे बहरे, कोई न सुनने वाला है।
राखी मैं तुम्हे भेजूँगी, रक्षाबंधन आने वाला है।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन