कविता : उदयकाल
दृश्य मनोहर उदयकाल का, स्वर्ग धरा पर है लाए।
जीव-जगत् में चहल-पहल हो, कली-कली है खिल जाए।।
शीतल पावन पवन चले है, सुरभि चमन में भर जाती।
सूर्य-लालिमा नीलगगन को, अद्भुत अनुपम कर जाती।।
सैर करो तुम उदयकाल में, मन हर्षित हो जाएगा।
अभ्यास योग करने से तन, नवल तंदुरुस्ती पाएगा।।
उदयकाल में सोनेवाले, उर्जावान नहीं बनते।
आलस में भरकर दिनभर, तनाव ग्रस्त बने रहते।।
सुनो शंख ध्वनि भजन कहीं तुम, परमशाँति मन में भरती।
कहीं चहकते पक्षी देखो, कहीं आरती मन हरती।।
देवभूमि है कर्मभूमि है, उदयकाल बतलाता है।
दृश्य-दृश्य हर कोना-कोना, आनंदित कर जाता है।।
सूर्य समय पर आकर सबको, अनुशासन सिखलाए है।
बिना थके मंज़िल तक जाओ, सीख एक भर जाए है।।
प्रातःकाल में उठकर ‘प्रीतम’, जीवन का हर सुख पाओ।
जागो और जगाओ सबको, मीत भोर के बन जाओ।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना