कविता – अनुयायी
मैं अनुयायी बन सद्गुरु, नित-नित तुमको ध्याऊँगा।
मार्ग दिखाओगे जो, चलना उसपर चाहूँगा।।
सत्य वचन लगते हैं, जो भी तुम कह जाते हो।
तिमिर मिटा जीवन का, नया उजाला लाते हो।
कथन तुम्हारे गुरुवर, भजन बनाकर गाऊँगा।।
सभी बुराई झूठी, संग तुम्हारा सच्चा है।
सीखेगा अभी बहुत, मन यह मेरा बच्चा है।
रीति धर्म कर्म सभी, तेरे ही अपनाऊँगा।।
शीश नवाऊँ गुरुवर, कृपा रहे आशीष रहे।
मैं उपवन तू बहार, ज़र्रा-ज़र्रा प्रीत कहे।
तुझे पुकारूँ हरपल, हरपल तुझे बुलाऊँगा।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना