*कविताओं से यह मत पूछो*
कविताओं से यह मत पूछो
कविताओं से यह मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है ।।
कविता विचार का सागर हैं,
हर शब्द अमृतधारा है।।
कविता इतिहास का स्त्रोत हुई,
कविताओं से युग सारा है।
महाभारत के श्लोकों को भी,
व्यास ने काव्य में उतारा है।।
कविताओं से ये मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है।।
कविताएं बच्चों को भाती हैं,
बाल मन को बहलाती हैं ।
अ आ इ ई उ ऊ, का भी,
कविताओं ने रंग उभारा है ।।
कविताओं से ये मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है।।
जितना डूबोगे सागर में,
उतना ही खोते जाओगे ।
कविता मन ही खुशहाली है,
कविता मदिरा का प्याला है।
शब्दों से पूर्ण आकाश तले कविता,
टिमटिमाता एक तारा है।।
कविताओं से ये मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है।।
कितना ही दुख जीवन में,
व्यक्ति विशेष के आया हो।
कितना ही अकेलापन,
मानव मन में समाया हो।
जब अंधकार में तुमने,
स्वयं को कुंठित पाया हो।
कविता ही सच्ची दोस्त बनी,
जब अपनों ने ठुकराया हो।।
जब दुख होता तब कोई ना,
सुख में तो नाम सभी लेते।
कविता इनके विपरीत हुईं,
संग हमेशा साथ रहीं,
जैसे कि ईश्वर ने भक्तों को,
दुख में पार लगाया हो।।
कविताओं से यह मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है।
कविताओं से यह मत पूछो,
कितना एक मोल तुम्हारा है।।
डॉ प्रिया।
अयोध्या।