कविताएं लिखता हूँ
सुविधा भी लिखता हूँ और दुबिधाएँ लिखता हूँ।
मैं सबके जीवन की अनेकानेक, विधाएं
लिखता हूँ।
लिखना है कर्म धर्म मेरा बस इतना सा है ज्ञान मुझे,
मैं हिंदी कुल का कवि हूँ ,बस कविताएं लिखता हूँ।
महिमाण्डन झूठा करना ,कवियों का है
धर्म नही।
जो ऐसा करते रहते है ,उनको कविता का मर्म नहीं।
जीवन के कठिन डगर में भी ,संभावनाएं लिखता हूँ।
मैं हिंदी कुल का कवि हूँ ,बस कविताएं लिखता हूँ।
कविताएँ मन को सृजित करतीं ,जब आगे बढ़ती जाती है।
कविता मुखर जब होती है ,तो छाती चौड़ी हो जाती है।
जीवन के बुरे दौर में भी , आशाएं लिखता हूँ।
मैं हिंदी कुल का कवि हूँ ,बस कविताएं लिखता हूँ।
घायल हो चुके सत्य की ,सही सलामत पाँव है कविता।
तथ्यों का पेड़ ,सत्य की छाया और स्नेहिल छाँव है कविता।
मानव के अंदर की सारी बाधाएँ
लिखता हूँ।
मैं हिंदी कुल का कवि हूँ ,बस कविताएं लिखता हूँ।
सही रस्ते पर चले मुसाफिर बस इतनी
सी चाह मुझे।
मेरी कविता पढ़कर जीवन सुधरे ,नही चाहिए वाह मुझे।
कविता में भी पिता, बहन, भाई व माताएं लिखता हूँ।
मैं हिंदी कुल का कवि हूँ ,बस कविताएं लिखता हूँ।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी