©”कल से कल सँवार न हो तू भीड़ में शुमार..”
©”कल से कल सँवार
न हो तू भीड़ में शुमार..”
कल को संवारने में तू
आज बर्बाद न कर।
हथेली की रेखाओं का
सृजन अब..स्वयं ही कर।
न जाने किस दौर में …
ले जाए यह..जिन्दगी?
सब्र रख कल गुज़रा है, तो..
आज भी गुज़र जाएगा..
पर..कल का आज क्या है.?
जिस पर सँवार सके तू कल को !
सब्र रख, कर्म में शर्म न रख,
वक्त बदलते ही कर्म दिखता है।
कल के दायरों में तू देख ज़रा..
तेरा सँवरा हुआ कल दिखेगा..
ज़रा मुस्तैदी रख,तैयारी भी रख.
आगे चलने वालों के पीछे हमेशा..
आप ही कायनात चलते देखी है।।
सस्नेह प्रस्तुति
©अमित कुमार दवे,खड़गदा