कल की भाग दौड़ में….!
” वर्तमान…
शायद गूंगा है…
या फिर मौन है…!
देखता है, सब कुछ…
प्रतीत है उसे अतीत की बातें…
मगर क्यों ख़ामोश है…?
बातें कुछ पुरानी…
यूं ही दुहराता रहा…!
ये कितनी उचित है या अनुचित…
मगर ये कुछ कहता नहीं…!
हो अपने-पराये…
या चित-परिचित,
लेकिन ये करता कोई भेद नहीं…!
शायद यह उसकी अनवरत अभिव्यक्ति है…!
दुहराते पुरानी दौर की बातें…
यूं ही वर्तमान सरक रहा…!
भविष्य की चिंतन करता…
योजना-खांका-भवंर जाल में उलझ,
इच्छा मेरी, क्यों तड़प रहा…?
अनुमानों की राह चल…
वर्तमान की खुबसूरती कुचल…!
काल्पनिकता की बातें संग-रहगुजर…
है जो हकीकत आज, से क्यों बिखर रहा…! ”
” अचानक बहती हवा के जोर ने कहा :
है जो अपने पास…
क्या वह पर्याप्त नहीं…?
जिस क्षण या कल का,
कोई पता नहीं…
क्या वह आज, वर्तमान के लिए संताप नहीं…?
कुछ सीख, कल की बातों से…
न कर शिकायत, मत हो खता…!
गुमराह न हो…!
कर ले समझौता वर्तमान से…
जो भी है तेरे पास ,
उससे ही अपना प्रेम जाता…!
है न जिसका अता-पता…
आने दे उस कल को,
मगर क्यों है आज से ही इतनी खता-खता..!
माना कि भाग दौड़ का सफ़र है…
पकड़ रफ़्तार, कर सफ़र…!
कल भी एक दौर था,
आज भी एक दौर है…
मान ले कल भी रहेगा एक अच्छा सफ़र…! ”
***************∆∆∆*************