कल ऐसा क्या लिये बैठा है
कल ऐसा क्या लिये बैठा है
आज को मुश्किल किये बैठा है
वो क्यूँ वफ़ाओं से ख़ाली है
किस बाज़ार में दिये बैठा है
बहुत बोलता है जुनूं उसका
यक़ीनन आज वो पिये बैठा है
नहीं ख़ौफ़- ए- ख़ुदा हैरां हूँ में
वो किसकी पनाह लिये बैठा है
क्या सज़ा हो इस बेकारी की
गुनाह- ए-उलफत किये बैठा है
उम्र छोटी कोशिश ख़ुदक़शी की
लगा जैसे बहुत जिये बैठा है
अब पैसा बोले ‘सरु’ सिर चढ़कर
और हुनर होंठ सिये बैठा है