कल्पना
कल्पना के विस्तृत नभ में
भागती फिरूँ मैं इधर उधर
नही चाहती खो जाऊँ मैं अपने
जीवन की हर सुहानी डगर।
कल्पना की गहराई हो सदा ही,
सागर से भी गहरा।
दूर दूर तक फैले वह लेकर मन में
उम्मीदों का रोमांचक सफर।
कल्पना यही की जाऊँ क्षितिज के पार,
जहाँ हो मेरे प्रेम का मिलन।
न हो कोई भी रोक टोक वहाँ पर
नही हो कोई भी जीवन का बंधन।
कल्पना यही की हो प्रिय से मिलन,
न हो कोई भी इच्छा न हो जरूरत,
बस साथ रहे हर दुख सुख में
हो रूह का रूह से मिलन।
कल्पना के जगत में नही कभी हो
दुख की काली परछाई।
हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ हो
जीवन बनें सदा सुखदाई।