कल्पना
मनुष्य कल्पना प्रिय होते है ,
किसी सुन्दर तस्वीर की कल्पना करें ,
तो चित्रकार बन जाते हैं।
किसी भावपूर्ण गीत / कविता की कामना करें ,
तो गीतकार/ कवि बन जाते हैं।
किसी सुन्दर मूर्ति की कल्पना करें ,
तो शिल्पकार बन जाते हैं ।
अपने परिश्रम से और रचनात्मक बुद्धि कौशल
से कलाकार तो अवश्य बन जाते है।
भगवान भी कल्पना प्रिय है तभी उन्होंने ,
कल्पना की थी एक सुंदर और सशक्त जीव की ,
तो मनुष्य को बनाया।
मगर मनुष्य मनुष्य जैसा क्यों नहीं बनता ?
मनुष्य एक आदर्श मनुष्य की कल्पना
क्यों नहीं करता ?
किसी के दुख या पीड़ा को देखकर ,
पीड़ा / दुख महसूस क्यों नहीं करता ?
क्यों पीड़ित / दुखी मनुष्य या अन्य जीव के
स्थान को अपनी कल्पना से नहीं बदल सकता ?
यदि वो यह कल्पना करे की” इसके स्थान पर मैं होता तो क्या करता” ?
यदि वो यह कल्पना करे ,
इस धरती पर हर मनुष्य और
अन्य जीवों का जीवन सुखी हो जाए ।
तो क्या वो एक सुंदर मन वाला ,
आदर्श मनुष्य न बन जाएगा ।
काश ! वो सूनले बस एक बार अपने जमीर की ,
तब यह सबसे सुंदर तस्वीर होगी जगत की ।
सच मानिए ! वही होगा सबसे महान कलाकार ,
जो एक आदर्श मनुष्य कहलाएगा ।
जिसकी सुन्दर कल्पना से धरती साक्षात
स्वर्ग सी सुन्दर बन जायेगी ।
तब ही भगवान की भी सारी कल्पनाएं और उनकी रचनाएं सार्थक हो जाएगी ।
काश ! ऐसा हो जाए मनुष्य कल्पना करे ,
मानवता की ।