कल्पना की उड़ान
माँ क्या है ये…तुम भी न हर समय वही राग….मन नही लगता…अरे खुद ही कुछ करो …मैं क्या कर सकता हूँ ..तुमने तो हमारी परवरिश भी ठीक से नहीं की। इतना लाड़ दुलार भी बच्चे को नही देना चाहिए कि वो खुद चलना भी भूल जाये ।…..लगातार फोन में से आवाज आ रही थी कुश की । रेखा तो जैसे काठ की हो गई थी..निःशब्द….। कुश ने फोन काट दिया पर वो फोन कान से लगाये रही। मन किया पूछे ….अगर तुझे चलना नही आ पाया तो अपनी पसंद की लड़की से विवाह करना कैसे आ गया …अपने माँ बाप का अपमान करना कहाँ से आ गया…तू समझदार था तो अपनी पत्नी से हमारा सम्मान क्यों नही करा सका।अपने पापा का असमय जाना भी तुझे क्यों नहीं खला ..अपने बहन भाई रिश्तेदार पल में गैर और गैर अपने बनाना कैसे आ गया । पर व्यर्थ था कुछ कहना । 50 साल की उम्र में ही वृद्धावस्था का डर सताने लगा था । पति तो यह सदमा सह नही पाये थे उन्होंने एक दिन अचानक सोते सोते ही उसका साथ छोड़ दिया था । इकलौती संतान और इधर वो अकेली। पैसे से मजबूर नही थी। पति डॉक्टर थे काफी जायदाद और पैसा था । यही सोचते सोचते पता नही कब नींद आ गई रेखा को।
कॉल बेल की चूं चूं से नींद खुली तो देखा काम वाली बाई थी। चार दिन बाद आई थी। वो भी अपने बेटे के साथ रहती थी पति को गुजरे कई साल हो चुके थे । रोज बहु बेटे से झगड़ा होता था । उसे देखते ही गुस्से में रेखा बोली…कहाँ थी इतने दिन…न कोई खबर न आई ..पता है कितनी परेशानी हो जाती है । मंजू बाई वहीं जमीन पर बैठ गई ..कहने लगी….क्या करूँ भाभी(इसी सम्बोधन से बुलाती थी) …बेटे बहु मुझसे मकान अपने नाम कराने को कह रहे हैं रोज झगड़ा होता है इस बात पर…उस दिन तो हद ही कर दी..मुझे हाथ पैर बांधकर डाल दिया रोटी भी नही दी.. जैसे तैसे खुद को छुड़ा पुलिस स्टेशन पहुंची और रपट लिखाई ….पुलिस आई तो मैंने बेटे बहु दोनों को घर से निकाल दिया सामान सहित । अभी तो जान है मेरे शरीर मे कमा कर दो रोटी खा सकती हूं । जब जान न रही तो देखा जाएगा कुछ तो भगवान ने मेरे लिये भी लिखा ही होगा । फिर ये मकान सरपंचों के नाम लिख दूँगी ताकि मुझ जैसा कोई बेसहारा रह सके …पर औलाद को कुछ नही दे कर जाऊंगी ….फिर वो उठी और काम मे लग गई ।
रेखा सोचने लगी ….’तू भी अभी किसी पर निर्भर नही है पढ़ी लिखी है सोशल है पैसे की कमी नही है और ये अकेलापन तेरा कोई भी दूर नही करेगा न ही कोई साथ देगा । इन किटी क्लब छोड़कर क्यों नही ऐसा कुछ करती जिससे तेरा मन भी लगा रहे और समाज का भी भला हो जाये । इतना बड़ा बंगला खाली ही पड़ा रहता है क्यों नही तू भी इसमे ऐसी महिलाओं के लिये कुछ करती …. एक सुकून भरी प्रसन्नता उसके चेहरे पर छा गई …..और फिर कल्पनाएं नये पंख लेकर उड़ान भरने लगी …..
18-07-2018
डॉ अर्चना गुप्ता