कली
मुझे तोड़कर भी तुम मुझे मिटा नहीं सकते,
फूल हूॅं जिसे कुचल खुशबू उडा नहीं सकते।
कुचले अगर हथेली महक रह ही जाएगी,
मिटेगा नहीं स्वर मेरी चहक रह जाएगी।
बड़े ही नाजों से पाला है तूने ऐ माली,
मुझे पा खुशियों से झूमी वन की हर डाली।
मारुत ने अपने हिंडोले में मुझे झुलाया,
चंद्रमा ने निशा में पीयूष मुझे पिलाया।
तितली- भौंरों ने गुनगुन कर लोरी सुनाई,
गुलाबी परिधान पहन मैं इठलाई।
खिलकर गोद में तेरी फूल बनी कली,
काॅंटों में पा प्यार तेरा रही हॅंसकर पली।
संघर्षों से डरी ना कष्टों में घबराई,
मुस्कान पर की न्योछावर तूने नोन राई।
तेरे दिए संस्कार मेरी अमूल्य थाती
स्वर्णाक्षरों में अंकित मेरी जीवन पाती।
—प्रतीभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर (राजस्थान)