कली
कली
कच्ची कली कचनार की
कंगनी ऊपर चढ़ती जाये
कमसिन कोरक इठलाती
कमनीय छटा बिखराये
कुसुमित सुरभित शर्मीली
कोख पराग कण सजाए
कवच ओढ़ मलयज पवन
कुसुम कली अलि भरमाए
कुसुमाकर में गुंचा बावरी
कंगन सी खनकती जाये
कलिका यौवन चटकाती
काटों माही खिलती जाये
कोंपल काँपती आहट पा
कुटिल माली नीडे़ आये
कोमल नन्ही अधखिली
कठोर झट तोड़ ले जाये
कामिनी कर धरा मुकुल
कुन्तल संग गई गुथाये
कुड्मल सोहे शीष ऊपर
क़िस्मत पर गर्वित इतराये
रेखा