कलियुगी महाभारत
आज भी दोहराई जाती है घर घर मे महाभारत की कहानी.
जिसमे होते है पात्र दुर्योधन और शकुनी.
धृतराष्ट्र की भी होती है उन कहानीयोमे भरमार.
जिनकी होती है अंधी अपेक्षाये अपरंपार.
जिसमे होते है लाचार भीष्म और द्रोण.
सखाप्रेमी होता है जिसमे अभिमानी कर्ण.
पुत्रप्रेमी गांधारी जैसी उसमे होती है कई.
कही कही दिखती है कुंतीसी माँ ममता मई.
विदुर जैसे भी होते है उसने ज्ञानी नीतीवान.
तो दु:शाषण जैसे दुराचारी का भी होता है उसने स्थान.
कृपाचार्य अश्वस्थ्थामा जैसे भी होते है दिगभ्रमित.
फिर जीवन जिते है वो आपणा अभिशापित.
द्रोपदी का भी होता है उस कहानी मे संचार.
जो परिस्थितीयो से हमेशा ही रहती है लाचार.
पांडवो जैसे होते है उसमे नगण्य महामानव..
और कौरवो जैसे भी होते है अगणित दानव.
रूप रंग नामोमें हो सकती है इनके भिन्नता.
लेकिन गुनो मे होती है इनके समानता.
अर्जुन जैसा भी होता है मे एक इन्सान.
जो हमेशा रहता है अपनों से परेशान.
द्वापर मे हुई थी ये महाभारत की कथा.
लेकिन अभी भी दोहराई जाती है ये प्रथा.
अर्जुन जैसे की होती है उसमे हार ही हार.
क्युकी कृष्ण के बिना वो हॊजाता है लाचार.