“कलियुगी-इंसान!”
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देखलो! आज कलियुग के दौर में-
इंसान- इंसान को ना समझ रहा।
प्यार की भाषा तो- वो भूल गया!
पर नफ़रत की भाषा समझ रहा।।
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जो मिले थे संस्कार सब भूल गया!
पढ़-लिखकर भी असभ्य बन गया।
बात-बात में ‘दंगा-फ़साद’ कर रहा!
वो समाज का प्रतिनायक बन गया।।
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आज का इंसान- जोरू का..बन गया!
मां-बाप की सेवा करना भी भूल गया।
जिन्होंने प्यार से पाला था औलाद को!
बेटा- अपने मां-बाप को ही भूल गया।।
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कुसंगति में पड़कर- बेटा बिगड़ गया!
शिक्षा छोड़कर- अपकर्म में डूब गया।
पिता- अपने बेटे का कर्ज चुका रहा!
बेटा- शौक खातिर कर्ज में डूब गया।।
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देखो- ये कैसा कलियुगी प्रभाव पड़ा!
आज का इंसान किस ओर चल पड़ा।
क्यों अपनी मंजिल-राह भटक गया..?
क्यों जीवन-पतन की ओर चल पड़ा..??
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यह कलियुगी-इंसान! समझ नही रहा!
धर्म-कर्म छोड़ के अधर्म कार्य कर रहा।
गुंडा-गर्दी,लुट-पाट, हत्या, सतीत्वहरण–
देखो! कैसे-कैसे घिनौने कार्य कर रहा।।
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:==*रचियता: प्रभुदयाल रानीवाल*==:
======*उज्जैन{मध्यप्रदेश}*=====:
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