कलियुगक प्रवाह
धीया-पुता उजियाल बुझाईया
कलियुग भेलै जुआन आब।
घोड़ा कटिंग के केश कटा कऽ
छौड़ा सहै ने ककरो ताव।।
तेरह-वरषक उमर बुझाई छै
मोछक छै ने नाम-निशान।
दु-दिन पर अस्तुरा चलबय
कहय छै आब हम भेलौं जुआन।।
गाड़ी में नहिं ब्रेक लगाबै
माथ बुझाई छै सेहो फेल।
कनियो डिसमिस भेलौं रे बौआ
जिनगीभरि तों बेचबाय तेल।।
मध्यमों में तऽ क्रौस लगै छै
एकबेर के कहय बारम्बार।
माय-बाप के संठ करय छै
जखने सिखबय लोक-व्यवहार।।
छौड़ा गोर छै गौरबे आन्हर
बुच्चीया कहय ने हमहुं कम।
जहिया संऽ मोबाइल एलय या
माय-बाप छै नाको-दम।।
✍️बिन्देश्वर राय’विवेकी’