कला
तुम्हारी वो कलाबाजियाँ भी कमाल की थी ।
तुम्हारे हर खेल में, हम हक़ीकत बुन बैठे ।
तुम माहिर हो दिल तोड़ने की कला में बहुत ।
कई दफा झ्स खेल को दोहराया होगा ।
चालाकियों की कला तो सभी सीख जाते हैं ।
कठिन तो सरलता से जिए जाना है ।
उनमें सब खुद को पुख्ता करते गए ।
उनमें उनका भी कुछ बचा ही नहीं ।
उनसे क्या बात मैं करूं हक की ?
जो खुद के हक भी संभालने की
कला न सीख सके ।