कला
. कला
जब उसने देखा
मेरी भावनाओं को
ख़ामोशी की बेड़ियों में
दम तोडते हुए
तब बन गई वो ,,
,,,,,’शब्द ‘
जब उसने देखा
मेरी हँसी को
बेरंग होते हुए
तब बन गई वो ,,,
,,,,’ रंग ‘
जब उसने देखा
लम्हों के स्वरों को
यूँ ही बिखरते हुए
तब बन गई वो ,,,
,,,,,’ गीत ‘
जब उसने देखा
मेरे क़दमों को
किसी मोड़ पर थकते हुए
तब बन गई वो ‘,,,
,,, ,’ पंख ‘
शब्द भी ,,,,,
रंग भी ,,,,
गीत भी ,,,,
पंख भी ,,,,
यही है मेरी कला ,,,