*कलयुग*
” समय का चक्र बड़ा निराला है
यहाँ अपना कौन और पराया कौन
यह रहस्य बड़ा सोचने वाला है
पहले जब युग था पुराना
उसमें हर शख्स था
अपना चाहने वाला
अब इस मतलब युग का भेष बड़ा विचित्र
दूसरे के रोने पर
अब यहाँ लोग हँसते हैं
देखो तो इस कलयुग में लोग
एक दूसरे की खुशियां देखकर जलते हैं
दुःख में इंसान के नमक छिड़कना
सुख पाते ही उन्हें अपना रिश्तेदार कहना
जेब हो खाली तो
अपना ही पास आने से कतराता है
धन दौलत के आते ही
वह खुद को सबसे करीबी बताता है
यह कलयुग है या मतलब युग
समझ ना पाई हूं
मैं इंसान बनकर बड़ा पछताई हूँ
जिसे देखो ठगता है झूठ बोलकर
दूसरे के दिल को ठेस पहुँचता है
ऐसे दौर को देखकर मन बड़ा घबराता हैं”✍🏻