कलयुग में भी गोपियाँ कैसी फरियाद /लवकुश यादव “अज़ल”
कलयुग में भी गोपियाँ कैसी फरियाद करती हैं,
चले आओ वृंदावन कान्हा तुम्हें वो याद करती हैं।
मिलो हर बार तुम ऐसे जैसे मीरा याद करती हैं,
तुम्हारे दर्शन में कृष्ण ये आंखें उदास रहती हैं।।
ये कैसी कृष्ण लीला है आपकी मुरलीधर,
आपके जन्मउत्सव पर भी ये उपवास करती हैं।
कलयुग में भी गोपियाँ कैसी फरियाद करती हैं,
चले आओ वृंदावन कान्हा तुम्हें वो याद करती हैं।।
ताकती आंखें उदास चेहरे दिल में प्यार रखती हैं,
मिले दर्शन कन्हैया का वो ऐसी आस रखती हैं।
बिछड़ कर रह रहीं ऐसे जैसे विलाप करती हैं,
गोपियाँ आज भी गोकुल की तुमको प्यार करती हैं।।
लिए माखन हैं पहुँची द्वार पर निराश बैठी हैं,
कुछ मिलने बात सुनकर ही तस्वीर को निहार बैठी हैं।
कलयुग में भी गोपियाँ कैसी फरियाद करती हैं,
चले आओ वृंदावन कान्हा तुम्हें वो याद करती हैं।।
कई राधा तो खुशियों का त्योहार करती हैं,
चले आओ अब तो माखनचोर वृंदावन को।
मिलो हर बार तुम ऐसे जैसे मीरा याद करती हैं,
तुम्हारे दर्शन में कृष्ण ये आंखें उदास रहती हैं।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश