“कलयुग का मानस”
“कलयुग का मानस”
संसार की हालत हुई
आज बुरी हे भगवान
खुद की कमी अस्वीकारे
दुसरों के सुख से परेशान,
ना परिवार के साथ
बैठकर गप्पे लड़ाए
ना ही मैदान में वह
कभी कसरत करने जाए,
पड़ोसी क्यूं सुखी बैठा
क्यूं वह मुस्कुराए
क्यूं कार खड़ी उसके गैराज में
क्यूं वह बगीचा लगाए,
निज स्वभाव के बारे में
नगण्य ही सोच रखे
पड़ोसी की निगरानी में
स्वयं को व्यस्त रखे,
टांग खिंचने में लगा रहे
गलियों में ठाला चुगली पुकारे
ना दूसरों को चैन से जीने दे
ना ही शांति से स्वयं जिंदगी गुजारे।