कलयुग का अवसान
पहले देखता था, उच्छृंखल बालक गली के कुत्तों पर पत्थर मारके उनके आहत् वेदना रुंदन स्वर से प्रफुल्लित होते थे,
अब देखता हूं , कि एक इंसान दूसरे इंसान को पत्थरबाजी से दुःख पहुँचाकर प्रसन्न हो रहा है,
पहले देखा करता था, बच्चे कूड़ा करकट और सूखी लकड़ी इकट्ठा कर आग लगा उसके चारों ओर नृत्य कर आनंदित होते थे,
अब देख रहा हूं , एक मानव दूसरे मानव का घर जलाकर उसे जलता देख हर्षित हो अट्टहास कर रहा है,
क्या मानव की अंतरात्मा को मार कर उसके स्थान पर दानव की आत्मा ने प्रवेश कर लिया है?
या निहित स्वार्थ , धर्मांधता , द्वेष एवं घृणा की राजनीति ने निरीह मानव की मानसिकता को भ्रष्ट कर उसे यंत्र चलित मानव में परिवर्तित कर दिया है?
जिससे एक मानव अपने विरोधी मानव को समाप्त कर उसे अपने अस्तित्व की सुरक्षा मानने लगा है ,
शायद वह भूल चुका है , कि किसी पर पत्थर बरसाने से उसे भी दूसरी ओर से आने वाले पत्थरों से चोट लगेगी,
किसी का घर जलाने से प्रतिकार स्वरूप उसके घर में भी आग लगेगी,
क्या यह कलयुग का अवसान है ?
जब पृथ्वी पर पाप की पराकाष्ठा में वर्चस्व के लिए परस्पर विरोधी विनाशकारी शक्तियाँ महाप्रलय मचाएंगी,
तब पृथ्वी से मानव जीवन नष्ट होकर
नवयुग का उद्भव होगा, और चहुँओर असीम शांति स्थापित हो जाएगी।