“कलम”
“कलम”
सृजन भी साधना,
साधन है कलम,
माँ शारदेआह्वान,
भावों का आगमन l
अनुभव की स्याही,
जब भर लेता मन,
कागज के मंच पे,
खिलते जीवन रंग l
छलकते हैं मौसम,
झलकता जीवन,
इतिहास को संजों,
जिंदा रखती कलमl
भावों के गगन पे,
खिले इंद्रधनुषी रंग,
विचार धार लगाती,
शक्ति जगाती कलम l
सत्य पे अडिग रहे,
राह सुझाये सुगम,
न बिके न धर्मांध दिखे,
वही सच्ची कलम l
स्वरचित
ऋतुराज दवे