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15 May 2023 · 1 min read

कलम से

कलम से (कविता)
********

मैंने कलम हाथ में थामी
नन्हें अक्षर लिखना सीखा।
बना कलम को ताकत अपनी
सुख-दुख उससे कहना सीखा।

तन्हा स्वप्न सजा रातों में
ख़्वाबों ने झट ताबीर बुनी।
कलम उठाकर सिरहाने से
रचना ने मेरी पीर चुनी।

काग़ज़ के पन्नों पर कितने
जज़्बातों ने जामा पहना।
ग़ज़ल सजी दुल्हन सी मेरी
मुक्तक का पहनाया गहना।

माँ-बेटी की रुदन कथाएँ
पतझड़ सावन रूप निराले।
विरह-वेदना, प्रेम-मुहब्बत
सत्ता, देश सभी लिख डाले।

लोग दिलों में बैर पालते
पीठ पे करते मीठे वार।
क्या डरना ऐसे लोगों से
किया कलम से तीक्ष्ण प्रहार।

उर के भेद खोल कागज़ पर
कलम भाव का रूप सजाती।
मीठे वचन घोल शब्दों में
अमृत का रसपान कराती।

रचनाकार सभी कलमों से
हास्य -व्यंग्य रचना लिखते हैं।
भाले, बरछी, तीर बिना ही
सत्ता उथल-पुथल करते हैं।

कलम झुका देती चरणों में
उन तूफ़ानी तलवारों को।
तख्त सियासत के जो बैठे
उगल रहे हैं अंगारों को।

स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)

मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” कलम से” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।

Language: Hindi
261 Views
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