कलम
कलम लिख दे,गीत गाए भारती|
आम-जन दौड़े-उतारे आरती|
दिव्यता देती, मनुज को प्रीति कब?
जब निशा, ज्ञानग्नि से जल हारती|
नर, तभी यश-मान का शुभ भाल है |
सजगता के रूप की सुर-ताल है |
सीख -सद्आलोक विकसित भानु-सम
चमक जाए, समझ विजयी माल है |
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2013 में प्रकाशित मेरी कृति “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के 02 मुक्तक
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
25-04-2017
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से नए आई एस बी एन और नए कवर के साथ प्रकाशित है जो अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।