कलम तुम्हे सच कहना होगा !
कलम तुम्हे सच कहना होगा,
स्याही को आंसू बन बहना होगा।
मजलूमों की दास्तां सुनानी होगी,
दर्द की दवा भी बतानी होगी।
शोषित हैं, उनकी आवाज बनो,
नए गीतों की तुम साज बनो।
ढाल बनो उनकी जो भूखे हैं,
दिन और रात जिनके रूखे हैं।
दुख में जो बहता वो खून लिखो,
मजबूरी में जो, उनका जुनून लिखो ।
दो चुनौती अब तो मीनारों को,
साशान की मजबूत दीवारों को।
लिखो किसान की वेदना को,
विधवाओं की संवेदना को।
भूखे बच्चो की भूख लिखो,
सदियों की तुम चूक लिखो।
वैश्यायों की कथा सुनाओ,
मजबूरो की व्यथा बताओ।
करो उजागर हत्यारों को,
सरकार के झूठे नारों को।
लोगों को दुख में जब रहना होगा,
गुरबत में सब कुछ सहना होगा।
लाशों को जब गंगा में बहना होगा,
कलम तुम्हे सच कहना होगा।