कलम ठहर न जाए देखो।
कलम ठहर न पाए देखो।
स्याही सूख न जाए देखो।
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दो पैरों पर चलने वाले।
कितने हैं चौपाये देखो।
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इक दूजे के पागलपन से।
दोनों ही पगलाए देखो।
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वक्त से पहले खिल उठते हैं।
बदन बहुत गदराये देखो।
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रुत से देखो कितने बचते।
आम बहुत बौराए देखो।
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उसने तुमको सूट बताकर।
चिथड़े हैं पहनाए देखो।
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ख़्वाब बेचता है जो तुमको।
सपने वही चुराए देखो।
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इक मकान का ख़्वाब दिखाकर।
उसने शहर जलाए देखो।
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नज़र, नज़र से बात करे क्या।
“नज़र” नज़र घबराए देखो।
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Kumar Kalhans