“कलम की धार”
(1)
अभी तो कलम,
चली नहीं है मेरी।
तू उड़ बन के फाख्ता,
एक दिन कटेंगे पर तेरे,
मेरी कलम की धार से।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…
(2)
वो मुश्किलें खड़ी करते रहे ,
हम हौसलों को हवा देते रहे।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…
(3)
तुम्हे गुरूर है इतना देखो
हमें गिराने की हसरत में
खुद ही गिर चुके हो कितना।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…
(4)
ये साजिशों का दौर है,
जरा बच के चलो।
यहाँ पत्ता पत्ता छल चंद,
जरा बूटे बूटे को बता दो।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…