कलम की ताक़त
कलम की ताक़त के आगे तलवार कुछ नहीं
प्यार के सामने नफ़रत की दीवार कुछ नहीं
जिस कलम से पहला प्रेम पत्र लिखा था
उस कलम के बदले सारा संसार कुछ नहीं
ज़ुबान सिल दे ज़ालिम, तो कलम चलती रहेगी
किसी शहंशाह का कोई फ़रमान कुछ नहीं
आजकल , है क़लम बिकने के दौर में
संभलो इसके बिना अभिमान कुछ नहीं
डा राजीव “सागरी “