कलम की अभिलाषा
“चाह नही मैं वैरागी सम,
जीव-जगत का सार लिखूँँ।
चाह नही मैं प्रेम मिलन की,
बातें निराधार लिखूँ।
चाह नही देवों की महिमा,
और असुरों की हार लिखूँ।
चाह नही धन-वैभव खातिर,
छंदों का भण्डार लिखूँ।
मुझसे ऐसी कविता लिखना,
जिसमें वीरों का सम्मान हो।
मातृभूमि की खातिर जिसमें,
समता व स्वाभिमान हो।