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22 Sep 2021 · 1 min read

” कलम आज ललकार रही “

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
================

उठ जाओ वीर धनुर्धर अब,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो ,
कविता तुम्हें पुकार रही !!

कौन सुनेगा क्रंदन उनका ,
जो अपने घर में कैद हुए !
अधिकारों को रौंद रौंद कर ,
उनके सुख को छीन लिए !!

व्यथित ह्रदय को कौन सुनेगा ,
आँखें उनकी निहार रही !!
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो ,
कविता तुम्हें पुकार रही !!

लिख डालो उनकी पीड़ा को ,
लाखों बच्चे उनके कहाँ गए ?
जब देश हमारा अपना है ,
तब युवक हमारे कहाँ गए ??

मायें बहनें बंद कमरों में ,
घुटकर अपने आंसू पोछ रही !
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब ,
कलम आज ललकार रही !!
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो
कविता तुम्हें पुकार रही !!

कब तक इनके अधिकारों ,
को जंजीरों में जकडेंगे ?
कब तक इनके जज्बातों ,
को पदतल से हम कुचलेंगे ?

यह ज्यालामुखी बन सकता है
जनता सब चीत्कार रही !
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब ,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो
कविता तुम्हें पुकार रही !!

====================

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड

Language: Hindi
1 Like · 179 Views
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