कर रहे शुभकामना…
कर रहे शुभकामना…
पर्व है गणतंत्र दिवस का, राष्ट्र की आराधना।
अखंड भारत देश रहे ये, कर रहे शुभकामना।
सबके सुख-दुख अपने सुख-सुख,
भाव मन में पुष्ट हो।
भेद-भाव की बात न हो अब,
हर मनुज संतुष्ट हो।
पनपे ना वृत्ति छल-कपट की
बनी रहे सद्भावना।
कर रहे शुभकामना….
जाति-वर्ग औ संप्रदाय की,
टूटें सब दीवारें।
गद्दारी जो करें देश से,
चुन-चुन उनको मारें।
विपदा आए कोई यदि तो,
मिल करें सब सामना।
कर रहे शुभकामना….
कोई बच्चा देश का मेरे,
रहे न भूखा-नंगा।
कर्तव्यों के हिम से निकले,
अधिकारों की गंगा।
हो सदैव उद्देश्य हमारा,
गिर रहे को थामना।
कर रहे शुभकामना….
स्वार्थ रहित हों कर्म सभी के,
राष्ट्र-मंगल से जुड़े।
गुलाम रहे न जन अब कोई,
मुक्त अंबर में उड़े।
प्रेम-भाव भर अमिट रिदय में,
मिटा कलुषित भावना।
कर रहे शुभकामना….
आत्मनिर्भर बनें भारत-जन,
सुप्त बोध सब जागें।
कर्मठता हो, कर्म श्रेष्ठ हों,
जड़ता मन की त्यागें।
रामराज्य का स्वप्न नहीं तो,
है महज उद्भावना।
कर रहे शुभकामना….
© डॉ.सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद
साझा संग्रह ‘साहित्य किरण’ में प्रकाशित