कर बैठे कुछ और हम
हैसियत देख ना पाए, कर बैठे कुछ और हम
इश्क के झोंके में, आकर कर बैठे कुछ और हम ।
मैं कहां था वो कहां थी, फर्क जमी आसमान का
फिर भी मिलने की कोशिश में, कर बैठे कुछ और हम।
चांद से मिलने चला था, जल गए सूरज तले
फिर भी बादल में समाकर, कर बैठे कुछ और हम।
छांक भर पानी निकला, मैं समंदर में जहां
प्यास बुझाने की तलब में, कर बैठे कुछ और हम ।
✍️ बसंत भगवान राय