— कर बंदगी उस की —
गरूर किस बात का करूँ,
भला जो मैं क्या लेकर आया था ,
नंगे बदन आया था दुनिआ में,
नंगे बदन जब जाना है..
किरायेदार बन कर आया था,
पापों का बोझ साथ ले जाना है,
गर कुछ किया होगा अच्छा,
उस कर्म का अच्छा सा फल मिल जाना है..
जब तक था बचपन न समझी ने घेरा था,
आयी जवानी पड़ी जिम्मेवारी ,
बुढ़ापे में हाथ पैर कपकपाना है,
बचा वक्त गुजर जाए तेरे सिमरन में
शायद इसी ने साथ निभाना है,
न कोई अपना था,
न कोई अपना साथ होगा।
सोच सोच के मन घबराना है..
कर बन्दे बस बंदगी गुरु की,
उस ने बेडा तेरा पार लगाना है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ